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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित mostratimriteo.remittart+tterstitter.roteoroorreartronversion संज्ञा पाले अथवा कियावाचक ऋकागन्त संज्ञा वाले शब्दों के संबोधन के एक वचन में इल सूत्रा. नुसार प्रामध्य 'अर' आदेश की प्राप्ति नहीं होती। इस प्रकार की विशेषता सूत्र में उल्लिखित 'नाम्नि' पद के आधार से समझनी चाहिये । जैसेः हे पितः हे पिधरं । वैकल्पिक पक्ष होने से 'हे मित्र भी होता है।
प्रश्न: रूद संझा बाले ऋकारान्त शब्दों के संबोधन के एक वचन में ही 'अर' अरमेश को प्राप्ति होती है। ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:-जो सद संज्ञा वाले नहीं होकर गुण वाचक अथवा किया वाचक कारान्त संशा रूप शब्द हैं; उनमें संबोधन के एकवचन में श्ररं' आदेश-प्राप्ति नहीं होतो है; ऐमी विशेषता बतलाने खिये ही 'नाम्नि' पद का उल्लेख किया जाकर संबोधन के एकवचन में 'पर' आदेश-प्राप्ति का विधान रूद-संज्ञा वाले शब्दों के लिये ही निश्चित कर दिया गया है । जैसे कि-क्रिया वाचक संज्ञा के संबोधन के एकवचन का उदाहरण इस प्रकार है:-हे कर्तः ई कचार । 'हे पिमरे के समान 'हे कभरं' रूप नहीं बनता है यों रूढ़ वाचक संझा में एवं क्रिया वाचक अथवा गुण-वाचक संज्ञा में 'संबोधन एकवचन को विशेषता' समझ लेनी चाहिये ।
"हे पिअर" रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-३६ में की गई है। "हे पिअ" रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-३९ में की गई है।
हे फतः ! संस्कृत संबोधन के एक वचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप हे कत्तार ! होता है। इसमें सूत्र-संख्या-७ से रेफ रूप 'र' का लोप; २-८८ से लोप हुए 'र' के पश्चात शेष रहे हुए 'त' को द्वित्व 'त' को प्राप्ति; ३-४५ से मूल संस्कृत शब्द 'क' में स्थित अन्त्य 'ऋ' के स्थान पर प्राकृत में 'बार' श्रादेश-प्राग्नि और १-१९से संस्कृतीय संबोधन के एकवचन में प्राप्त अन्त्य हलन्त म्याजन रूप विसर्ग को लोप होकर हे कत्तार!" रूप सिद्ध हो जाता है । ३-४०॥
वाप ए ॥३-४१॥ श्रामन्त्रणे सौ परे आप एत्वं वा भवति ।। हे माले । हे महिले। अज्जिए । पञ्जिए। पथे। हे माला । इत्यादि ।। आप इति किम् । हे पिउच्छा । हे माउच्छा ।। बहुलाधिकारात् क्वचिदोत्वमपि । अम्मो भणामि भणिए ।
अर्थ:-'आप' प्रत्यय वाले आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के प्राकृत-रूपान्तर में संबोधन के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तन्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' को आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:-हे माले हे माले; हे महिने हे महिले; हे आर्यिके = (अथवा हे आर्यके !)=हे-मजिए; हे प्रार्थिक - हे पज्जिए पशाम्ता में कम से ये रूप होंगे: हे माला; हे महिला; हे अग्जिमा और