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* प्राकृत व्याकरण * +++++++++++++ +++++++++++++++++++** *99$$$$$$$$$+++++++++++4+5+++++
अर्थ:-प्रयमा विभक्ति के प्रत्ययों की प्राप्ति संबोधन-अवस्था में भी हुआ करतो है; तदनुमार प्राकृत--भाषा के नपुंसक लिंग वाले शब्दों में संबोधम-भवाथा में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय "स" के स्थान पर सूत्र--संख्या ३-२५ के अनुसार (प्राकृत में) प्राप्त होने वाले "म्"
आदेश-प्राप्त प्रत्यय का अभाव हो जाता है । अर्थात् नपुंसक लिंग वाले शब्दों में संबोधन के एकवचन में प्रथमा में प्राप्तव्य प्रत्यय "म" का अभाव होता है । जैसे:-हे तृण-हे सण; हे दधि-हे दहि और हे मधु-हे महु इत्यादि ।
हे तृण । संस्कृत संबोधन एकवचनान्त नपुसक लिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप "हे तण !' होता है। इसमें सूत्र-मंख्या १-१२६ से "" के स्थान पर "अ" की प्राप्ति और ३-३७ से थमा के समान ही संबोधन के एक वचन में प्राप्तम्य 'सि' के स्थान पर पाने वाले "म्" प्रत्यय का प्रभाव होकर "हे तण" रूप सिद्ध हो जाता है।
हे दधि ! संस्कृत संबोधन एकवचनान्त नमक लिंग का रूप है । इसका प्राकृत रूप दे दहि !' होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१८० से धू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-३७ से प्रथमा के समान ही संबोधन के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर आने वाले 'म्' प्रत्यय का प्रभाव होकर 'हे बहि' रूप सिद्ध हो जाता है।
. हे मधु । संस्कृत संबोधन एक वचनान्त नपुसकलिंग का रूप है । इसका प्राकृत रूप "हे महु !" होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से "ध" के स्थान पर "ह" की प्राप्ति और ३-३७ से प्रथमा के समान ही संबोधन के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय मि" के स्थान पर आने वाले "म्' प्रत्यय का अभाव होकर "हे महु !'' रूप सिद्ध हो जाता है । ३-३७।।
डो दीघों वा ॥ ३..३८ ॥
श्रामन्च्यार्थात्परे सौ सति अतः सेडों (३-२) इति यो नित्यं डोः प्राप्तो यश्च अक्लीवे सौ (३-१६) इति इद्भुतोरकारान्तस्य च प्राप्तो दीर्घः स वा भवति ॥ हे देव हे देवो ।। हे खमा-समण हे खमा-खमणो। हे अज्ज हे अज्जो ॥ दीर्घः। हे हरी हे हरि । हे गुरू हे गुरु । जाइ-विसुद्ध ण पहु । हे प्रभो इत्यर्थः । एवं दोगिण पह जिअ-लोए । पक्षे । हे पह। एषु प्राप्त विकल्पः ॥ इहत्व प्राप्ते हे गोअमा हे गोअम । हे कासवा हे कासव ।। २रे चप्पलया ! रे रे निग्विण्या ॥
अर्थ:-प्राकृत-भाषा के प्रकारान्त पुल्लिग शब्दों में संबोधन अवस्था में प्रथमा विमक्ति के एकवचन में सूत्र-संख्या ३-२ के अनुसार प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि" के स्थान पर आने वाले "ओ"