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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित # Norwardoiswwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwom
और ३-२ से प्रथम-द्वितीय तृतीय रूपों में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'अ-इ-प प्रत्ययों को प्राप्ति होकर श्रादि के तीन रूप 'मुखाम-मुद्धाइ और मुचाए' सिद्ध हो जाते हैं। शेष तीन रूपों में सूत्र-संख्या ३-१४ के अधिकार से एवं ३-० से संस्कृतीय पंचमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'मसि' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'प्रो-उ-हिन्तो' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर अन्त के तीन रूप 'मुद्धाओ-मुखाउ और मुशाहिन्तो भी सिद्ध हो जाते हैं।
बुद्धयाः-संस्कृत पञ्चम्यन्त एक वचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप बुद्धी, बुद्धी प्रा, बुद्धीइ और बुद्धीए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-२६ से संस्कृतोय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'अ-श्रा. इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर एवं अन्त्य हुस्व स्वर 'इ' को इसी सूत्र से 'ई' की प्राप्ति होकर कम से चारों रूप बुद्धीम-पद्धाआ-बुद्धीज और बुबाए सिद्ध हो जाते हैं। - सख्या:-संस्कृत पञ्चम्यन्त एक वचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप सहीश्र, सहोश्रा, सहीइ
और सहीए होते हैं। इनमें 'सही' रूप तक की साधनिका इसी सूत्र में वर्णित रोति अनुसार और ३.२६ से संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'श्र-प्रा.इ.ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'सही-सहीआ-सहीद और सहीए' सिद्ध हो जाते हैं।
धेन्या:-संस्कृत पञ्चम्यन्त एक वचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप घेणूत्र, घेणू पा, घेणूइ, धेणूए, धेणूओ, घेणूर और घेणूहिन्ता होते हैं। इनमें 'घेणु' रूप तक को साधनिका ऊपर इसी सूत्र में पर्णित रीति अनुसार और ३-२६ से आदि के चोर रूपों में संस्कृतीय पंचमी विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'अ-श्रा-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति एवं इमी सूत्र से अन्त्य हस्व स्वर 'ड' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर आदि के चार रूपयेणाअ-शेणू माधेपूर और घेणूए' सिद्ध हो जाते हैं।
अन्त के तीन रूपों में सूत्र-संख्या ३-१२४ के अधिकार से एवं ३-के विधान से पंचमी विभक्ति के एक वचन में "श्रो-उ-हिन्तो" प्रत्ययों को ऋमिक प्राप्ति तथा ३-१२ से अन्त्य हस्व स्वर "" को दीर्घ स्वर "अ" की प्राप्ति होकर अन्त के तीन रूप “धणूओ, धेगूठ और धेहितो" भी सिद्ध हो जाते हैं । . . वयाः संस्कृत पाचम्यन्त एक वचन रूप है। इसके प्राकृत रूप बहूध, बहूमा, पहूइ और धतूए होते हैं। इनमें "वहू" रूप तक की सिद्धि इसी सूत्र में वर्णित रीति अनुसार और ३-२६ से संस्कृतीय पञ्चमी विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय "अपि" के स्थान पर प्राकृत में कम से "अ-बा-इ-ए" प्रत्ययों को प्राप्ति होकर चारों रूप क्रम से “पहूज-पहा-यहूद और बहूए” सिद्ध हो जाते हैं।
"आगओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२०९ में की गई है। रत्याः संस्कृत पञ्चम्यन्त एक वचन का रूप है । इस के प्राकृत रूप रईओ, रईन और रहिन्तो