________________
प्रियोदय हिन्दी व्याख्या महित.
[ ५ ++to+000000000000000000000000rsoocomotorol000000000000000000***+++++
विभय। संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विल्यो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८ से "म" के स्थान पर ह." की प्राप्ति और :-२ मे पश्रमा विभाक्त के एक वचन में संस्कृताय प्रत्यय "सि" के स्थान पर अकारान्त पुल्लिग में "श्रो' प्रत्यय का प्राप्रि हाकर पितको रूप बद्ध हो जाता है।
'टि रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-18 में को गई है। 'या' (अध्यय) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७ में की गई है।
सख्या संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप सहीअ, महीपा, सहीइ और सहीए होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१८७ से मूल संस्कृत रूप 'सखी' में स्थित 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२६ से संस्कृतीय मुनीया विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय दा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से--'अ-श्रा-इ-प' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर कम से चारों रूप 'सही-सहीआ-सही और सहीए' सिद्ध हो जाते हैं।
सख्याः संस्कृत पाठयन्त एक वचन रूप है । इसके प्राकृत रूप सही-सहीबा-सहीह और सहीए होते हैं। इनमें 'सही रूप की साधनिका उपरोक्त रोति से और ३-२६ से संस्कृतीय षष्पयन्त एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सम' के स्थान पर प्राकून में क्रम से 'अ-श्रा-इ-र' प्रत्ययों को प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप सही-सही-सही और सहीए' सिद्ध हो जाते हैं ।
'कर्य रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१7 में की गई है। 'वयणं रूप को सिद्धि सूत्र-सख्या ?-८ में की गई है। ' डिप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१६ में की गई है।
धेन्या संस्कृत तृतीयान्न एक वचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप घेणूअ, घेणूओ, धेणूइ और घेणूर होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२२८ मे मूल संस्कृत शब्द 'धेनु' में स्थित 'न' के स्थान पर 'ए' की माप्ति; ३-२६ से संस्कृतीय तृतीया विक्ति के एक वचन म प्राप्तन्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ-श्रा-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति और इपो सूत्र से अन्त्य दम्ब स्वर व' का दाघ स्वर 'क' की प्राप्ति होकर कम से चारों रूप घेणअ, धेाभा, घेणूड और छपए मिद्ध हो आसे है।
धन्याः संस्कृत षष्ठयन्स एक पचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप वेणून घेणूत्रा, घेणूह और घेणूए होते हैं। इनमें घेणू रूप की सानिका उपरोक्त रीति से एवं सूत्र-संख्या ३.२५ से हो षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्तम्ब प्रत्मस स्' के स्थान पर शकृत में 'अ-बा-इ-र' प्रत्ययों की क्रमिक प्राप्ति और इसी सत्र से अन्य स्वर को दीपता की प्राप्ति होकर क्रम चारों रूप धेयाअ-धपूओधाई और घेणूए' सिद्ध हो जाते हैं ।