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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 100000000eostoriscomrostessorrorecosterodestrost40000000000000000.. 'वच्छम्मि' होता है। न कि स्त्रीलिंग वाले शब्दों के समान 'वच्छाअ-वच्छात्रा-वच्छाइ-वच्छाए' रूपों की रचना होती है । यही रहस्य वृत्ति के प्रारम्भ में उल्लिखित 'स्त्रियां' शब्द से जानना।
प्रमः-मूल सूत्र में 'टा-इस-डि-ति' ऐसा क्यों लिखा गया है ?
उत्तरः-'अ-प्रा-इ-ए' ऐमी श्रादेश-प्राप्ति केवल 'टा-साल-जि-स' के स्थान पर हो होती है। अन्य प्रत्ययों के स्थान पर 'अ-श्रा-इस आवेश प्रामि नहीं होती है; ऐपा सुनिश्चित विधान प्रदर्शित करने के लिये हो सूत्र में 'टा-इस डि-मि' का उल्लेख करना आवश्यक समझा गया है। इसके समर्थन में उदाहरण इस प्रकार हैं:-मुग्धा-मुद्धा, बुद्धिः बुद्धी; सखोन्सही; धेनुः = धेणू और वधूः = वहू । इन उदाहरणों में प्रथमा विभक्ति के एक वचन का प्रत्यय 'मि' प्रान हुआ है और उक्त प्रान प्रत्यय 'सि' का सूत्र-संख्या ३-१६ से लोप होकर इसके स्थान पर अन्स्य हस्व स्वर को दीर्घता प्राप्त हुई हैं; न कि 'प्रप्रा-इ-ए' रूप भादेश-प्राप्ति । अतएव यह सिद्ध करने के लिये कि 'अ-आ-इ-ए' रूप आदेश-प्राप्ति केवल 'टा-इस-कि-इसि' के स्थानों पर ही होती है न कि अन्यत्र ! इसी रहस्य को समझाने के लिये सूत्र में 'टाबस-हि-असि' का उल्लेख करना पड़ा है।
मुग्धया संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप मुद्धा अ-मुद्धाइ और मुद्धाए होते हैं। इनमें सूत्र--संख्या २-७७ से मूल संस्कृत रूप मुग्या में स्थित हलन्त 'ग्' का लोप; २.८६ से '' को द्वित्व 'धु' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व '' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति और ३-२६ से प्राप्त प्राकृत रूप 'मुद्धा' में संस्कृत के तृतीया विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ', 'ई' और 'ए' प्रत्ययों को प्राप्ति होकर क्रम से तोनों प्राकृत रून मुद्धाअ, मुखाई और मुवाए सिद्ध हो जाते हैं।
मुग्धायाः संस्कृत षष्टयन्त एक वचन का रूप है । इस के प्राकृत रूप मुद्वाश्र, मुद्धाइ और मुद्धाए होते हैं । इनमें मूल संस्कृत रूप 'मुग्धा मुद्धा की सिद्धि उपरोक्त रीति अनुसार, तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-२६ से संस्कृत के षष्ठी विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'स' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'म-इ-प' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर फ्रम से तीनों प्राकृत रूप मुद्धाम मुखाइ और मुद्धाए सिद्ध हो जाते हैं।
मुग्धायाम संस्कृत सप्तम्यन्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मुखान, मुशाइ और मुखाए होते हैं। इन मूल संस्कृत रूप 'मुग्या' मुद्धा' को सिद्धि उपरोक्त रीति अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-२६ से संस्कृत के सप्तमी विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'डि' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'श्र-इ.ए' प्रत्ययों को प्राप्ति होकर कम से तोनों प्राकृत रूप मुद्धाअ मुबाइ और मुद्धाए सिद्ध हो जाते हैं ।
'कर' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१36 में की गई है।