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* प्राकृत व्याकरण *
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'मु' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१८७ में की गई है।
'ठि' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१६ में की गई है।
'या' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १६७ में की गई है ।
दो।
मुग्धिका संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप मुद्धिश्राम, मुद्धिश्राइ २७७ से मूल संस्कृत रूप 'मुग्धिका' में स्थित 'गु' का लोपः २-८६ से धू' को द्विश्व 'धू' की प्राप्ति २ ६० से प्राप्त पूर्व 'धू' के स्थान पर दु' की प्राप्ति; १-१७० से 'क' का लोप तत्पश्चात् प्राप्त प्राकृत रूप 'सुद्धिभा में सूत्र संख्या ३२६ से संस्कृत के वृत्तीया विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अइए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर afterere, fairs और मुखिआए सिद्ध हो जाते हैं।
कमलिकया, कमलिकायाः और कमलिकायाम् क्रम से संस्कृत तृतीया पष्ठी सप्तमी विभक्ति के एक वचन के रूप है। इन सभी के प्राकृत रूप कमलिया, कमलिश्राह और कमलिआए होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१७७ से मूल संस्कृत रूप 'कमलिका' में स्थित द्वितीय 'क' का लोप और ३-२६ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'दा' के स्थान पर षष्ठी विभक्ति के एक वचन में प्रप्तव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर और सप्तमी विभक्ति के एक वचन में श्रष्टव्य प्रत्यय 'डि' के स्थान पर 'अ-इ-ए प्रश्ययों की क्रम से प्राप्ति होकर प्रत्येक के तीन ठीन रूप 'कमहिजाम कमलिभाइ और कमचिनाएँ सिदूध हो जाते हैं ।
या संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बुद्धीच, बुद्धीआ बुढीइ और बुदुधीए होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३ २६ से संस्कृतिीय तृतीया विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में आइए' प्रत्ययों को क्रम से प्राप्ति एवं इसी सूत्र से अन्त्य ह्रस्व स्वर इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप बुद्धी बुद्धीमा बुद्दी और बुद्धी सिद्ध हो जाते हैं ।
बुद्धषाः संस्कृत षष्ठ्यन्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बुद्धो, बुद्धीआ, बुद्धीइ धौर बुद्धी होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३-२६ से संस्कृतीय षष्ठी विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यक्ष '' के स्थान पर प्राकृत में 'अन्धा इन्' प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति और इसी सूत्र से अन्त्य स्वर 'इ' को 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप बुद्धो बुद्धोआ- बुद्धीइ और बुद्धोए सिद्ध हो जाते हैं ।
बुछयाम् संस्कृत सप्तम्यन्त एक वचन रूप है। इसके प्राकृत रूप बुद्धी, बुद्धीना, बुद्धोइ और बुद्धी होते हैं। इनकी साधनिका भी सूत्र संख्या ३-२६ से ही उपरोक्त रीति से होकर चारों रूप क्रम से बुद्धी- बुद्धीआ-मुद्दीर और बुद्धीए सिद्ध हो जाते हैं।
"कचं " रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११६ में की गई है।