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अध्यात्मकल्पद्रुम अमुक साध्य लक्ष्य में होनेसे, विशेष हेतुसे विस्तारपूर्वक भी इतना बैराम्बका विषय, अधिकारी, प्रावश्यकता और उसके तत्वों
पर प्रास्ताविक उल्लेख किया गया है। इस मन्थके 'अध्यात्म' . उपोद्घातको लिखते हुए प्रथम 'अध्यात्मकल्पद्रुम'
ऐसा इस ग्रन्थका नाम क्यों रक्खा गया है और इसका क्या अर्थ है इसपर विचार करना पड़ता है। इस अन्यके कौन कौन से विषय हैं और पैराग्यके विषयकी वे किस युनिसे पुष्टि करते हैं इसका विचार कर अन्तमें पन्थकर्ता, उनका समय, उस समयकी जैनियोंकी स्थिति, अन्धकी शैली, भाषा, उददेश आदि विषबोंके साथ साथ ग्रन्थकर्ता द्वारा रचित और बतलाये हुए अन्य ग्रन्थोंकी सूक्ष्म परन्तु सारांशमें आलोचना की जायगी। अध्यात्म शब्दका अर्थ हमारे उपरोक्त पढ़े अनुसार आत्मा सम्बन्धी विवेचन करनेवाला विषय ऐसो होता है। 'अध्यात्मोपनिषद्' प्रन्थमें श्रीमान् यशोविजयजी महाराज अध्यात्म शब्दका यौगिक और रुढ़ दोनों अर्थ करते हैं । वे लिखते हैं कि--
आत्मानमधिकृत्य साद्यः पञ्चाचारचारिमा ।. शब्दयोगार्थनिपुणास्तदध्यात्म प्रचक्षते ॥१॥ रूख्यर्थनिपुगास्त्याहुश्चित्तं मैत्र्यादिकासितम् ।
अध्यात्म निर्मलं बाह्यव्यवहारापबृंहितम् ॥२॥ - 'अध्यात्म शब्दका व्युत्पतिके विचारसे अर्थ किया जाय तो आत्माको उद्देश कर पंचाचार( ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार श्रोर वीर्याचार )में व्यवहार-वर्तन करना होता है, और इसका रुढ़ अर्थ किया जाय तो बाह्य व्यवहारसे महत्ता प्राप्त किये हुए मनको मैत्री, प्रमोद आदि भावनासे वासित करना होता है। ये दोनों अर्थ बहुत विचारने योग्य हैं। शब्दार्थ तो सहज ही में हमारे समझमें पा सकता है, परन्तु रुढार्थ समझने 'की बहुत आवश्यकता है। बाह्य-व्यवहार सांसारिक व्यवहार अथवा प्राकृत व्यवहारको छोड़देनेका यहाँ उद्देश नही है, परन्तु इस व्यवहारके. स्वरूपको समझ कर उससे मनको आगे बढ़ाना, उससे.