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( ३५ ) करने वाली स्त्रियाँ ही गृहिणी पद के अधिकार को प्राप्त करती हैं। इसके विपरीत आचरण करने वाली दूसरी स्त्रियाँ उभय कुल को लजानेवाली होती हैं।
बेटी ! मेरे इस उपदेश को हृदय में सदा धारण रखना । अपने अच्छे आचरणों से उभय कुल की कीर्ति को बढाना । कभी २ हमको भी अपना स्वजन जानकर अवश्य याद करती रहना।
महाराजा प्रतापसिंह की तरफ मुख करके उन्हें भी अपनी बेटी की भोलावण बड़े भाव भरे शब्दों में की । इस प्रकार स्नेह की सरिता बहाते हुए राजा दीपचन्द्र अपनी बेटी को बिदा दे दीपशिखा की ओर परिवार के साथ लोट पड़े। वे सर्वस्व खोये हुए व्यक्ति की तरह बेसुध चले जाते थे । चलते २ रुक गये, घूमकर पीछे की ओर देखा सूर्यवती अांखों से ओझल हो चुकी थी। वे लम्बी और गरम सांस लेते हुए बोले :
अर्थोहि कन्या परकीय एव तामद्य सम्प्रेष्य परिग्रहीतुः । जातो ममायं विसदः प्रकामं
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ॥ निश्चय ही कन्या-धन पराया-धन है। आज उसे अपने पति के घर भेज कर धरोहर वापस लौटा देनेवाले