________________
( ८२ ) क्यों कुमार के दर्शन नहीं मिल रहे। रानी और उसकी सखियों ने बड़ी होशियारी के साथ चारों ओर श्रीचन्द्रकुमार को ढूढा, मगर कहीं भी उसका पता न चला । सच है पुण्य-हीन-प्राणी के लिये कल्पवृक्ष कहां रखे हैं ? दैवयोग से चिन्तामणि रत्न किसी निर्धन को प्राप्त हो जाय पर वह उसके पास थोडे ही ठहरला है ? हाय मेरे वेटे का क्या हुआ ? क्या किसी ने उसे मार दिया ? अथवा कोई उसे चुरा ले गया ? सखियों ! मुझ अभागिनी के भाग्य में ऐसे पुत्र रत्न का टिकाव कैसे हो सकता है ! । हा ! दुर्दैव मैं तो जींदा भी मरी हुई हूँ। ऐसे रानी सूर्यवती मुक्तकण्ठ से विलाप करने लगी। लडखडाती हुई रानी को सैन्द्री हाथ पकड कर महल में ले आई । वहां भी रानी का विलाप जारी रहा
हायरे दुर्दैव ! मैने तेरा क्या बिगाडा है ? जो तैने मुझे पहिले ऐसा पुत्र रत्न दिया और देकर वापस छिन लिया ? क्या मुझ पर अनर्थ परम्परा प्रारम्भ करने के लिये ही ऐसा अनिष्ट शरु किया है ? अथवा हे दैव ! तुम्हारा इसमें क्या दोष है ?
सुखम्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परो ददातीति कुबुद्धिरेषा । अहं करोमीति वृथाभिमानः स्व-कर्म-सूत्र-प्रथितो हि लोकः ।।