Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 472
________________ ( ४५२ ) महाराजाधिराज ! पहिले मुझसे अज्ञात अवस्था में अपराध हो गया है महिरबानी करके उसकी माफी बचें ! कुमार श्रीचंद्र ने कहा- कैसा अपराध ? और कैसी माफी साफ २ कहियें ताकि पता चले । कुमार के ऐसा पूछने पर राजा अरिमर्दन ने हाथ जोडकर सारी घटना कह सुनाई। तब पिता की आज्ञा पाकर श्रीचंद्र ने उस बंदरीया की आंखों में काले अंजन का प्रयोग करके उसे एक रूपवती रमणी के रूप में परिणत कर दिया । सब लोग चकित हो गये । बंदरीपना मिट जाने से राजकुमारी सरस्वती लज्जा से अपना सिर झुका कर अपने सास-ससुर के चरणोंमैं नमस्कार कर के चंद्रकला आदि रानियों में जाकर खड़ी हो गई। रिमर्दन ने लाया हुआ दहेज महाराजकी सेवा में समर्पित किया । साथ ही हंसावली के साथ धोखा करनेवाले अपने कुमार चंद्रसेन की तरफ से भी पूर्णतया क्षमा चाही । महाराज ने उसे अपनी फौज में सन्माननीय पद पर स्थापित किया । भील्लराज मल्ल की कन्या मोहिनी पितृदत - दहेज सामग्री के साथ अपने भील धुत्रों को लेकर वहां आई । कुमार ने उसे भी रहने को एक सुदर महल दे दिया ।

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