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. ( ४७२ ) धर्मीजन जीवन सुखसागर भगवान, श्री वर्धमान जिन वन्दू विनय विधान ।। श्री वर्धमान प्रभु तीर्थंकर जिनवीर, थे दीर्घ तपस्वी परमातम पद धीर । जिनने जीवन से दिया जगत को ज्ञान, ज्ञानी सिद्धों को नमूसहित बहुमान ।२। तप की है महिमा भारी भाव प्रधान, श्री वर्धमान तप करो भत्रिक गुणवान । सिरिचंद नरेश्वर जैसे केवल ज्ञान, पाओगे पावन पागम विधि विधान ।३।
दश चार वरष में मास तीन दिन वीस, : आंबिल उपवासे बढते विसवा वीस ।
जो करें निरन्तर तप भाविक नर नार, सुर गणनायक हरि गुरु कवि करें जयकार ।४।
॥ स्तुति ३ ॥ संकट कट जावें, पावें संपति योग,
श्रीचंद्रनरेश्वर जैसे शिव सुख भोग । जो वर्धमान तप करें कसवें भाव,
-धन वर्द्धमान प्रभु भा पुण्य प्रभाव ॥१॥