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श्री वर्द्धमान-तप-स्तवन
॥ स्तवन १ ॥
( तर्ज-- सुणो चन्दाजी सीमंधर ) अरिहंत नमो वर्धमान तप करके भविजन भाव से । भवमें न भमो वर्द्धमान तप करके भविजन भाव से ||टेर श्रतम - गुण तप उज्ज्वल करियें, निज कर्म - मैल सत्र परिहरियें । अरिहंत नमो वर्द्धमान ॥१॥
इच्छारोधन तप आदरियें
इक इक बढते बिल करियें, उपवासान्तर कर सौ भरियें ।
कर वर्द्धमान तप जय वरियें अरिहंत नमो वर्द्धमान ॥२॥
पारस प्रभु शासन अधिकारी, श्रीचन्द्र नरेश्वर अवतारी ।
गये शिवपुर तप कर बलिहारी अरिहंत नमो वर्द्धमान ॥३॥ कर्मोदय -- भय कट जाते हैं,
जय विजय निकट में आते हैं ।
सुख सभी प्रकट हो जाते हैं अरिहंत नमो वर्द्धमान ॥४॥ जब भाव कुसुम कलियां खिलती, अ ंतरतम हृतन्त्री हिलती ।
तप से तब सुख सुषमा मिलती- अरिहंत नमो वद्ध' मान ॥५॥