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(४८१ ) ( तर्ज-तेरे पूजन को भगवान बना मन मंदिर०) भाखें श्रीगुरुगौतम-स्वाम, तपस्या से सुख होय तमाम | तपस्या गुरुगम विधिविधान, करो भव्यातम हो कल्यान ।। बाहिर के शत्रु मिटजावें, अतर के शत्रु हट जावें । जगत यह मित्र रूप वन जावे, तप की महिमा महा महान भा० तपस्या द्रव्य-भाव दो भेद, करते टारे सारे खेद । प्रकटता जीवन भाव अभेद, निजातम गुण है यह तप जान । तपस्या तत्व निर्जरा मानी, समझो सेवो सद्गुरु ज्ञानी। भव में भटकें वे आसानी करें तप तपसी का अपमान भा०। आंबिल वद्ध मान तप करते, श्रीचंदजैसे वे सुख वरते। आतम उज्ज्वल गुण से भरते, विचरते आतम लब्धिनिधान सुखकर वीर प्रभु की वानी,प्रातम परमातम पद दानी। चेटक नृप सुनते विनय विधानी, करते वन्दन विकसित प्रान। श्रातम सुखसागर भगवाना,होता जिन हरि पूज्य प्रधाना। तपपद धारक वर प्रणिधाना,गावें कीर्ति कवीन्द्र महान भा०।
कलश इम वर्धमान जिनेश शासन भाव भासन साधना, तप बर्द्धनाम विशेष करते आत्मगुण आराधना । उनकी समुज्ज्वल कीर्तियाँ विस्तार से गाया करें, सुकवीन्द्र साधुभाव से तप भावना भाया करें ।