Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
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( ४७४ ) श्रीवर्धमान तप जो करते नर नार,
ज्योतिर्मय होते नमो सिद्ध अविकार ॥२॥ बढते भावों से वरधमान तप जोग,
आराधे उनका हो भव-भाव-वियोग । आंबिल उपवासे सौ तक संख्या धार,
फरमावे जय जय प्रवचन--सारोद्धार ॥३॥ श्रीजिन हरि पूज्येश्वर शासन परधान, .
तप वर्द्धमान नर नारी करें सुजान । नित कवीन्द्र कीर्तित चन्द्र नरेश समान, ____ सुख भरते शासन देवी-देव महान ॥४॥
॥स्तुति ५ ॥ शासने पार्श्वनाथस्य-जातः श्रीचन्द्र-केवली । ___वर्धमान-तपोवेधा-वर्धमानसुखाय नः॥१॥ एकादि-शतपर्यन्तै–राचाम्लैवर्धमानकं । - उपवासान्तरं कृत्वा-तपः सिद्धान्त तान्भजे ॥२। तप-प्रात्मगुणः प्रोक्तो-निर्जरापरनामकः ।
कुर्वतां कर्मसंक्लेशा-पगमःप्रभवेच्छिवम् ॥३॥ जिनचन्द्र-जिनाधीश-वर्धमानस्यशासनम् ।
श्रितानां श्रीकृते नित्यं-भूयाच्छासनदेवता ॥४॥

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