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दरवाजों पर खिड़कियों पर लटक रही हैं। चारों ओर धूपदानों में दशांग धूप की लपटें उठ रही हैं। गुलाबजल के छिडकाव हो रहे हैं । जात २ के अतरों की मधुर महक दिल और दिमाग को तरोताजा कर रही है । बहुमूल्य जरकशी वस्त्रों के वितान बंधे हुए हैं। फर्शो पर मखमली कालीनें बिछी हुई हैं ।
उसी प्रसंग में ठोर ठोर गाना बजाना और नृत्य के ठाठ लग रहे थे । पुरनारियाँ मंगल गीत आलाप रही थीं। सुंदर बहुमूल्य वस्त्रालंकारों से सुसज्जित स्त्री पुरुष मूर्तिमान पुण्य स्वरूप कुमार श्रीचंद्र के दर्शन करने की खुशी में इधर उधर घूम रहे थे ।
इतने में तोप के धमाके होने शुरु हुए। दूर २ से इकट्ठे हुए नागरिक राजमार्ग के दोनों ओर जमा हो गये | जिनके मकान राजमार्ग के दोनों ओर थे उनकी तो खूब बन पडी । किनारे के पेड़ मकान उनके छज्जे चबूतरे कपोतालिकाऐं दर्शकों की भीड़ से भरचक भए गई थीं। उस समय का दृश्य रंग बिरंगे फूलों से भरे एक विशाल उद्यान के समान प्रतीत होता था |
शुभ घडि गई । कुमार श्रीचन्द्र बडी धूमधाम से नगर में प्रविष्ट हुए । किले पर सलामी की तोपें दगने