Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 469
________________ सूर्य के प्रकाश ने अपनी लम्बी २ भुजाओं से अन्धकार को गर्दनियाँ दे दी हैं। कमल खिल उठे हैं । भौरे गूजते हुए प्रसन्नता को सुरीली तान छेड रहे हैं । कुशस्थल की प्रकृति में कुमार श्रीचन्द्र की पधरावणी से एक अलौकिक आलोक के दर्शन हो रहे हैं। . . . . - राज-प्रासाद सुंदर ढंग से सज रहे हैं । जगह २ तोरण बन्दनवारें लहरा रही हैं । स्थान २ पर कुकुम बिखर रहा है। नगर के मुख्य २ चौराहों पर दरवाजे बन रहे हैं । उन पर रंग बिरंगे वस्त्रों की सोना चांदी के वरतनों की, हीरे पन्न मणिरत्नों की, केले के थम्भों की औरपांच-वर्ण के फूलों की सुन्दर सजावट हो रही है। सच्चे मोतियों की मालरियां, पुष्पमालायें, मकानों के

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