Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 467
________________ ( ४४७ ) इसके बाद विद्याधरेन्द्र सुग्रीव की पुत्री रत्नवती ने भी अपने पूर्वजन्म की स्मृति के योग से परम प्रतापी श्रीचन्द्रको अपना पति स्वीकार किया उसी समय श्रीचन्द्र ने वहाँ गुरु देव के सामने रत्नचूड़ की हत्या प्रकट करके रत्नवेग आदि से क्षमा माँगी । सुग्रीव और मणिचूड़ दोनों को श्रापस में एक दूसरे से क्षमा मँगवा कर उनमें मैत्री करवा दी। फिर उन दोनों के साथ वह धूमधाम से मणिभूषण नगर में प्रविष्ट हुआ । वहाँ पर दक्षिण और उत्तर श्रेणि के विद्याधर राजा अपनी अपनी कन्याओं और रत्नादिकों की भेंट लाये । श्रीचन्द्र ने उनको यथायोग्य सन्मानित किया। तदनन्तर रत्नवती रत्नचूड़ा मणिचूलिका और रत्नकांता आदि विद्याधरों की दूसरी पुत्रियों के साथ भी कुमार ने विवाह किया । उनके दहेज में उसको बहुत सी अमूल्य वस्तुएँ और आकाशगामिनी आदि विद्याएँ प्राप्त हुई । फिर सुग्रीव आदि एक सौ दश विद्याधर नरेशों ने मिल कर बड़े भारी उत्साह से बल और भाग्य में सर्व श्रेष्ठ श्रीचन्द्र को विधिपूर्वक विद्याधरों का चक्रवर्ती बनाया । बाद में उसने बड़े प्रेम और ठाटबाट से सिद्धाचल तीर्थराज की यात्रा की फिर माता-पिता, स्त्री, मित्र और विद्याधरों के साथ चक्री श्रीचन्द्र ने वैताढ्य पर बसे हुए सभी नगरों का निरीक्षण किया ।

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