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( ४५८ ) सडकें खुलवाई और भई बनवाई। सडकों के दोनों ओर नये पेड़ लगवाये । जैन धर्म के विश्वव्यापी सिद्धान्तों का प्रचार-कीर्तिस्तंभों पर बडी २. लाटों पर गुफाओं की मित्तियों पर, अंकित कर करके-किया। शास्त्र लिखवाकर साधु संतों को विद्वानों को भेंट किये ।
प्राधक्ये मुनिवृत्तीना-के सिद्धान्त को स्मरण रखनेवाले महाराजाधिराज श्रीचन्द्र ने अपने छोटे भाई एकांगवावीर को श्रीपर्वत के चन्द्रपुर की ज्येष्ठ पुत्र पूर्णचन्द्र को कुशस्थल पुरका राज्य सौंप दिया। दूसरे भी कनकसेन आदि राजकुमारों को अलग २ देशों के
राज्य बांट दिये। सब को प्रसन्न कर दिया। स्वयं नव 'प्रकार के परिग्रह की मृच्छा से मुक्त होने लगे।