Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 480
________________ ( ४६० ) वनपालक ने राजाधिराज श्रीचन्द्र को आचार्य श्री के आगमन से अवगत किया । सत्संग- प्रेमी महाराजा ने अपने जन परिवार के साथ आचार्यश्री के दर्शन वंदन एवं सिद्धान्त श्रवण का लाभ लिया । आचार्यश्री ने आत्म- गुणों का वर्णन करते हुए ज्ञान- दर्शन - चारित्र तप और शक्ति-प्रयोग का विधान किया । भोग में फंसकर जीव जीव के पास अधिक पहुंचता है, और त्याग की साधना से जीव अपने रूपको पाता हुआ परमात्मा बन जाता है। इस निरूपण को आत्मसात् करते हुए महाराजाधिराज राजराजेश्वर श्रीचन्द्र ने त्याग धर्म को अपनाने की भावना व्यक्त की। उस समय चन्द्रकला आदि रानियाँ, गुणचन्द्र आदि मन्त्रि लोग, आठ हजार नागरिक, अनेकों सेठ साहुकार, और चार हजार सन्नारियाँ भी उसी त्याग मार्ग को अंगीकार करने के लिये तैयार हुए । बड़े ठाठ से भागवती दीक्षा का महासमारोह सम्पन्न आ । गृहस्थी के त्याग से अनगार-धर्म को स्वीकारते हुए सबने सर्वविरति चारित्र रूप अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और ममत्व - इन पांच महाव्रतों को स्वीकार किया। गुरु कृपा, कठोर साधना, और निरन्तर अभ्यास

Loading...

Page Navigation
1 ... 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502