Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 479
________________ जड़ और चेतन ये दोनों अनादि तत्त्व है। इन दोनोंके मिश्रण का नाम ही संसार है। संसार में चार गतियां हैं। नरक-गति और तिर्य च-गति पाप से प्राप्त होने वाली दुर्गति कही जाती हैं, तो मनुष्य गति और देव गति पुण्य से प्राप्त होती हैं। मनुष्य गति में सम्यगदशन समगज्ञान और सम्यक चारित्र की साधना से जड़ और चेतन में मेद पैदा हो जाता है। कर्मों के अभाव में चेतन सच्चिदानन्द रूप होकर आत्यन्तिक और एकान्तिक मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। .. प्राचार्य श्री धर्मघोष उसी एकान्तिक और आत्यन्तिक मोक्ष के लक्ष्य को अपनाते हुए जनता में उसका प्रचार भी करते हैं। अपने साधु-परिवार के साथ एक दिन कुशस्थल के बाहरी उद्यान में उनका समवसरण हुआ।

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