Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 477
________________ त साधु-साध्वियों को वंदन कर के श्रीचन्द्रराज आदि अपने २ घरों को लौट आये । श्रीसुव्रताचार्य महाराज भी अपने परिवार के साथ अन्यत्र विहार कर गये। ___ राजाधिराज श्रीचन्द्र का राज्य मानों धर्म का साम्राज्य था । सब को अपने २ धर्मपालन में स्वतंत्रता थी। सब के प्रति उनका समान प्रेम था। शासन की प्रभावना, अभिवृद्धि और धर्म के साथ प्रशस्त कर्मों का प्रचार उनका जीवनोद श्य था। . . . राजर्षि-प्रताप, महर्षि-लक्ष्मीदन, महत्तरा-सूर्यवती, साध्वी लक्ष्मीवती आदि सब उत्कृष्ट चारित्र पालन कर के अन्तिम अनशन से स्वर्गवासी हो एकावतारी हुए । उनके देहोत्सर्ग-स्थान पर बडे २ स्तूपों की रचना की गई। पूजा का प्रबंध किया गया। राजा और रानियों ने बड़ी २ रथ यात्रायें निकलवाई । उनके सोलह सौ पुत्र-पुत्रियाँ हुई । सतरह पुत्र बडे प्रसिद्ध हुए। बारह वर्ष तक कुमार पद में समस्त कलाओं में कुशल हुए । सौ वर्ष तक एकछत्र साम्राज्य का भोग किया । सारी प्रजा को सुखी किया । पारसमणि और सुवर्ण पुरुष के योग से उनने स्थान २ पर दानशालायें

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