Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 487
________________ . SFET M ( ४६७ ) हमेशा तप के दिन दुपहरी में एक वार देव-वन्दन करें । देव वन्दन में वर्धमान तप के चैत्य-वन्दन स्तुति और स्तवनों का उपयोग करे* पर्द्धमान तक चैत्यकन्दन * . (१) (द्रुत विलम्बित छन्दः) करम के बल को झटं तोड़के, सहज में तप साधन से यहां । परम सच्चित आतम रूप हो, .... ____ जगत में जिन वीर जयी हुए। विशद भाव भरा भगवान ने, सुखदः शासन सर्व हितार्थ ही " . कह दिया, जिसने सन पा लिया. जगत में जन धन्य वहीं हुआ। विनय पूर्वक भाव विशेष से, वरवमान करें तप साधना । .. सुखसमुद्र बनें भगवान वे, .... हरि कवीन्द्र' नमोऽस्तु उन्हें सदा।३।

Loading...

Page Navigation
1 ... 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502