Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 489
________________ । ४६६ ) आंबिल तथा उपवास से बढते हुए तप साधना, जन जो करें संसार में उनकी सफल आराधना ॥१॥ आराधना आराधकों को मोक्ष पदका दान दे, शुम ज्ञान दे विज्ञान दे निज आत्म-शुद्धि विधान दे । पुण्य प्रधान महान तारणहार तीर्थ कर कहा, __शासन सुवासित आतमा हो कर्म को काटू अहा! ॥२॥ कर्म कटने को ही कहते निर्जरा हैं ज्ञानिजन, निर्जरा के साथ संवर से मिटे सारा विघन । विध्न लय से आतमा परमात्म पदवी को वरें, परमातमा की पुण्य कीर्ति हरिकवीन्द्र सदा करें ॥३॥ ____(४) (दोहा-छन्दः) समवसरण सिंहासने, बैठा श्रीभगवान । परिषद बारह बीच में, वन्दू विनय विधान ॥१॥ चारों मुख से चहुँदिशे, निज निज भाषा भाव । उपदेशे समझ सह-धन धन प्रभु प्रभाव ॥२॥

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