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हैं। इसमें
नमो अरिहंताणं - इस पद की वीस मालायें जपनी चाहियें। अरिहंत के बारह गुणों को याद कर के बारह नमस्कार करने चाहियें । बारह साथिये करने चाहियें । फेरी फिरते समय ये दुहे बोलने चाहिये
इच्छारोधन रूप तप - श्रातम गुण अवधार । द्रव्य भाव से कीजियें - तप हैं तारण हार | परमेष्ठी पद पांच हैं— आदि नमो अरिहंत | सांचे मन से समरते — होवे भव भय अन्त ॥
अरिहंत १२ नमस्कार
१. अशोकवृक्ष प्रातिहार्य संयुताय श्री' अर्हते नमः । २. पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य संयुताय श्री श्रर्हते नमः । ३. दिव्यध्वनि प्रातिहार्य संयुताय श्री श्रर्हते नमः ४. चामरयुग प्रातिहार्य संयुताय श्री श्रईते नमः । ५. स्वर्ण सिंहासन प्रातिहार्य संयुताय श्री श्रर्हते
नमः ।
महते
नमः ।
ऋहते
६. भामण्डल प्रातिहार्य संयुताय श्री ७. दुदुभि प्रातिहार्य संयुताय श्री ८. छत्रत्रय प्रातिहार्य संयुताय श्री श्रर्हते ६. पायापगमातिशयसंयुताय श्री श्रर्हते १०. ज्ञानातिशय संयुताय श्री बहते नमः । ११. वचनातिशय संयुताय श्री श्रहते नमः । १२. पूजातिशय संयुताय श्री अर्हते नमः ।
नमः ।
नमः ।
नमः ।