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इस प्रकार सभी स्नेही-साथी - सखा और सेवक वहां आये, और अपना २ परिचय देकर महाराज द्वारा समानित सत्कारित हुए । सारे कुशस्थल में प्रसन्नता का
वातावरण छागया ।
दी
कुमार श्रीचंद्रराज ने अपने भुजबल भाग्य बल और बुद्धिबल से सहज में ही समुद्र पर्यंत तीन खण्ड पृथ्वीका साम्राज्य संप्राप्त किया । सोलह हजार देशों के स्वामियोंने अधीनता स्वीकार की । रथ हाथी घोडे और सैनिकों की अपरिमित संख्या से अर्धचक्री के जैसे प्रभुतासम्पन्न श्रीचंद्रराज को सर्वत्र जयजयकार होने लगी ।
महाराजा प्रतापसिंह ने मौका देखकर शुभ दिन के, शुभ मुहूर्त में शास्त्रोक्त विधि से कुमार का अपूर्व और अवर्णनीय ढंग से महामहोत्सव पूर्वक राज्याभिषेक किया। सभी बड़े २ राजा महाराजा विद्याधर सामन्त मंत्री सेठ सेनापति आदि उस समय उपस्थित थे | कुमार श्रीचन्द्र एक छत्रधारी राजराजेश्वर की उपाधि से विभूषित ए । चन्द्रकला को प्रधान - राजमहिषी का पद प्राप्त या । कनकावली - पद्मश्री - मदनसु दरी - प्रियंगु मंजरीरत्नचूला - रत्नवती - मणिचूला--तारलोचना -- गुणावली--चन्द्र मुखी - चन्द्रलेखा - तिलकमंजरी - कनकावती - कनकसेना सुलोचना और सरस्वती ये सोलह पट्टरानियां बनाई गई ।