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( २८६ ) शुष्कांगी संहितभ्र विषम-कुचयुगा, नासिकाकान्त-वक्बा सा कन्या वर्जनीया सुख-सुतरहिता भ्रष्टशीलाच नारी ॥ __ अर्थात्-पीले नेत्रों वाली, पूए के समान छिद्रयुक्त गालों वाली, गधे के समान भारी आवाज वाली । मोटी जाँघों वाली, खडे केशोंवाली, लम्बे होठ और मुंह वाली, छोटे छोटे दाँतों वाली, श्याम रंग के तालु, झेठ और जीभवाली, सूखे दुर्बल शरीरवाली, छोटी भौंहैं और छोटे बड़े स्तनों वाली, लंबी चौडी-नाक वाली, शीलभ्रष्ट कन्या के साथ विवाह नहीं करना चाहिये । __ शास्त्र तो विवाह के बाद भी अयोग्य स्त्री के त्याग की आज्ञा देता है । जैसे:विवाद-शीलासनमर्द-सूरिणी, परानुकूला परपाक-पाकिनीम् । आक्रोशिनी शून्यगृहोपदेशिनी, त्यजस्व भायादश पुत्र-पुत्रियीम् ॥
अर्थातः--रात दिन कलह और विवाद करने वाली, दूसरों के अनुकूल चलने वाली, दूसरों के यहाँ खाना पकाने वाली, निन्दा करने वाली, सूने घर में सोने वाली स्त्री को चाहें वह दस पुत्र व पुत्रियों वाली. ही क्यों न हो उसे बिना विचार किए ही त्यांग देना चाहिये। . इस प्रकार कुमार श्रीचन्द्र ने प्रियंगुमंजरी के प्रश्नों का सुन्दर और स्पष्ट रूप से उत्तर दे उसे संतुस्त कर