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( ३८५ ) में उन्हें थोड़ी दर से बड़ी ही मधुर मुरज-ध्वनि सुनाई दी। अपने सारथि कुजर को सावधान करके वे उस ध्वनि को लक्ष्य करके चले । एक छोटी सी पहाड़ी पर किसी यच के मंदिर में द्वार बंद करके कुछ स्त्रियां श्रीचन्द्र के गीत मा रही थीं। उनकी उत्कण्ठा
और भी बढ़ गई। किंवाड़ के छेद से अंदर की गति विधि को देखा तो वहां आठ सुदर कन्याओं के साथ मदन मंजरी नाच गान कर रही थी। उसे देख कुमार को भारी प्रसन्नता हुई। गुप्त रूप से सारे कार्य कलाप को देखना, उनने तय किया सारी रात भर उन कुमारियोंको मदन सुदरी ने श्री चन्द्र-प्रबंध को नाच-गान के साथ समझाया।
रात बीत गई । मदन सुदरी उन कुमारियों के साथ यक्ष-मंदिर से निकल पड़ी। यह देखकर कुमार का हृदय खुशी के मारे उछल पड़ा। वे एकदम मन ही मन में बोल उठे "ओहो ! आज मेरा बड़ा भारी सौभाग्य है, कि मेरी स्त्री मुझे मिल गई।"
कौतुक देखने के इच्छुक कुमार अब भी प्रकट होना नहीं चाहते थे। अतः वे उस गुटिका के योग से अदृश्य रूप से उनके पीछे पीछे हो लिये । तब वे एक पहाड