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या सद्र पविनाशिनी स्मृतिहरी पंचेन्द्रियाकर्षिणी । चक्षुः श्रोत्रललाटदैन्यकरणी वैराग्यमुत्पाटिनी ॥ बंधूनां त्यजनी विदेशगमनी चारित्रविध्वंसिनी । सेयं धावाति पंच-भूत-दमनी प्राणापहर्त्री क्षुधा ॥
अर्थात् जो सुन्दर रूप को बिगाड़ ने वाली, स्मरण शक्ति को नष्ट करने वाली, इन्द्रियों को मुर्झाने वाली, ख कान और ललाट आदि को मलिन और निर्बल करने वाली वैराग्य उत्पन्न कराने वाली, बंधुओं का त्याग कराने वाली, परदेश में ले जाने वाली, चारित्र और सतीत्व को भंग करने वाली पांच भूतों का दमन करने वाली और प्राणों का नाश करने वाली है वह भूख बढ़ी तेजी से पेट में खलबली मचा देती है।
श्रीचन्द्रने संदेश लाने वाले सेवक को संकेत से ही समझा दिया कि आज बड़ी भारी मंत्रणा हो रहीं है अतः मैं आने में असमर्थ हूँ सो तुम जाकर माताजी से अर्ज करदो कि आप सब शीघ्र ही भोजन करलें । मेरेलिये तनिक भी इन्तजार न करें। भेरा रखा हुआ बीड़ा श्राज तक कभी निष्फल नहीं गया । इसलिये में जब तक यह मेरी प्रतिज्ञा पूरी न हो जायगी तत्र तक भोजन नहीं करूंगा । गुणचन्द्र ने कहा, "महाराज ! आपको ऐसे वचन
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