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( ४४१ ) ... पूर्व--कर्मों के उदय से छह महीनों के बाद ही चन्दन को अपने आदमियों के साथ विदेश जाना पड़ा । वह पाँच व्यापारी जहाजों को लेकर रत्न-द्वीप में गया वहाँ पर उसे खूब लाभ हुआ। वहाँ से कोणपुर की ओर लौटते हुए वह और उसके जहाज तूफान के कारण संकट में पड़ गये । एक बहुत बड़ा जहाज टूटफूट गया, और बाकी के अलग २ हो कर कहीं के कहीं चले गये । दैवयोग से चंदन का जहाज शर्वरमंदिर नामके बंदरगाह पर आ लगा । वहाँ पर उस जहाज को मोतियों से भर कर वह घूमता घामता बारह वर्षों से कोणपुर के तट पर जा पहुँचा। .
इधर जहाज के टूटफूट जाने पर जो लोग लकड़ी के लट्ठों की सहायता से पहले ही बृहणपुर में आ पहुँचे थे। उन्होंने चंदन सेठ के जहाज डूबने के समाचार लोगों से कह दिये, ऐसे दर्द और शोक भरे समाचार सुनकर चंदन के पिता, उसके मित्र, और अशोक श्री आदि बहुत दुःखी हुए। उन्होंने कई कोसों तक के समुद्री किनारे को छान मारा परन्तु चंदन का कहीं पता न चला। आखिर छः सात साल के बाद लोकापवाद से अशोकश्री-चंदन की स्त्री ने विधवा-वेष