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चंदन सेठ इस भव से पहले तीसरे भव में श्र ेष्ठी
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पुत्र था । इसका नाम मुलस था। इसके बाद दूसरे भव में यह कहीं कुलपुत्र हुआ । यह अशोक श्री उस जन्म में कुलपुत्र की पत्नी थी । इसने उस जन्म में हँसी हँसी में वियोग कराने वाला अंतराय कर्म बाँध लिया। सुलस के भवमें भी यह उसकी भद्रा नामकी पत्नी थी । उस समय भी इसको चौबीस वर्षों का वियोग सहना पड़ा | सुलस ने एक दिन के अन्तर से पाँच सौ प्रायम्बिल किये, और उसकी स्त्री भद्रा ने निरंतर दो बार पाँच पाँच सौ आय
बिल किये | उस तपस्या के प्रभाव से वे दोनों स्वर्ग को प्राप्त हुए और बाद में वहाँ से चव कर भद्रा तो राजा की पुत्री अशोक और सुल चंदन सेठ हुआ है। पूर्व जन्म के स्नेह के कारण ही इसने चंदन को अपना पति बनाया है । उसी पूर्वजन्म के कर्मबन्धन के कारण ही इन दोनों का विछोह हुआ । इसने पूर्व जन्म में रस कूप में से जिस मनुष्य को बाहर निकाला था वही तुम स्वर्ग से चक्कर इस भव में इसके मित्र बने हो ।
आचार्य देव के इतना ने कहा, "सूरीश्वर ! अगर भी हैं, तो हमें बताइयें कि अवशिष्ट कर्म किस प्रकार नष्ट होंगे ।"
कह कर रुक जाने पर चंदन हमारे वैसे कर्म आज मौजूद हमारे यह कर्म या अन्य