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( ४२० ) सहसा अपने मुख से नहीं निकालने चाहिये कारण कि न मालूम यह चोरी कितने दिनों बाद जाकर पकड़ी जावे" ___ यह सुनकर श्रीचन्द्र एक दम वहां से उठ खडे हुए
और उन राजाओं के साथ बगीचे में जाकर पैदल ही वन विहार करते हुए उस मठ के पास जा पहुंचे। वहां पर उनने पांच छः योगियों के साथ पान खाये हुए उन तीनों चोरों को देखा। राजा श्रीचन्द्र ने मठ के सामने की चबूतरी पर बैठ कर उन सभी योगियों को अपने पास बुलाया। वे सब वहां से चले आये और आशीर्वाद देकर बैठ गये। - आप लोगों में कौन कौन योगी और कौन कौन भोगी हैं ? राजा ने पूछा राजन् ! हम लोग तो योगी हैं
और आप भोगी हैं। योगियों ने उतर दिया । तो फिर यह पान की लालिमा आपके मुख में क्यों ? राजा ने कहा। .. यह सुन उन तीनों का मुंह काला पड़ गया। महाराज का संकेत पा कर गुण चंद्र ने उन तीनों को हिरासत में लेलिया साथ के मनुष्यों ने हुक्म पाकर उस मठ के पास की शिला को उठा कर दूर फेंक दिया, उसके नीचे एक विशाल और अद्भुत भूगृह था, उसमें अपार
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