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क्या वह तुमने नहीं दी भी तुम
क्या तुमन खर नहीं हो ? राजा ने दूसरे से बचा। पहले खान हुए आम के फल तुम्हें याद नहीं हैं ? जब जल्दी बताओ यह तीसरा कौन है और इसका क्या परिचय
इतना सुनते ही वे तीनों उनके चरों पर गिर पड़े और गिड़गिड़ा कर माफी माँगने लगे। बादमें चोरोंने अपना वक्तव्य शुरु किया, "राजन् ! लोहजंघ इस नामका एक बड़ा मशहूर चोर हो गया हैं। उसके तीन पुत्र हैं। एक रत्नखर, लोहखर, और वज्रखर । ये तीनों कभी कुण्डलपुर में, कभी महेन्द्रपुर में, कभी पहाड़ों में, कभी नदियों के कगारों की खोहों में निवास करते हैं । वज्रखर के पास तालोद्घाटनी विद्या थी परन्तु उसके मरने के बाद वही विद्या उसके पुत्र वज्रंजंघ को प्राप्त हुई । रत्नखर को पिता ने अपना सब से छोटा पुत्र समझ कर अदृश्यगुटिका दीथी । लोहखर मैं हूँ ही । इस प्रकार मैंने आपके समक्ष हमारा सारा वास्तविक हाल कह सुनाया है, अब आज से आप ही हमारे स्वामी हैं ।"
महाराज श्रीचंद्र गुणी थे, गुणियों का आदर करते थे। उन्होंने विद्यागुण संपन्न उन चोरों को जीवन-दान किया। अपने सत्संग से उन को भी वीतरांग मार्ग के अनु