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वर्मा के परिवार को लेकर महेन्द्रपुर लौट आये । वहाँ के राजा त्रिलोचन को साथ लेकर मार्ग में आने वाले राजाओं से श्रादर पाते हुए वे वसन्तपुर पहुँचे। वहां का राज्य वीरवर्मा को देकर वे कुछ दिन वहां ठहरे ।
पत्रों द्वारा बुलाये हुए, और स्वेच्छा से आये हुए राजा लोग वहां एकत्रित हुए । श्रीचन्द्र राजमुकुट-कुण्डल- छत्र चामर आदि राज्य चिन्हों से अलंकृत हो कर अपने उस गंधहाथी पर सवार हुए ऐरावत — स्थित इन्द्र के समान चलते हुए तिलकपुर पहुँचे ।
तिलकपुर के राजा तिलकसेन ने कुमार का भारी स्वागत किया । इधर से पुत्र का आगमन सुन कर महाराजा प्रतापसिंह अपने भारी लवाजमे के साथ कुशस्थलपुर से निकल पडे | सेठ लक्ष्मीदत्त भी राजा की आज्ञा को शिरोधार्य करके आठ व्यवहारीयों के कुटुम्ब के -साथ सामान तैयार करने के लिये रत्नपुर में गया ।
गुप्तचरों से पिताजी पधार रहे हैं, ऐसा जानकर श्री चन्द्रराज सारे दलबल के साथ पितृ - मिलन के लिये सामने आये दूरसे दोनों एक दूसरे के बाजों को सुनकर आनन्दित हुए । सेना की अग्रिम टुकडियों ने एक दूसरे के राज्य-ध्वजों के दर्शन किये। कुछ आगे बढने