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( ४३३ ) श्रीच'द्रराज का भारी लाड प्यार किया । रास्ते में पिताकी
आज्ञा से कुमार ने राजा कनकदत्त की राजकन्या कुमारी रूपवती से ब्याह किया । ___ एक दिन कुमार ने अपने जीवन का सिंहावलोकन करते हुए अपने भाई जयकुमार आदि कुमारों के कैद की बात याद कर के अपने पिता से विनीतभाव से प्रार्थना की कि देव ! आप उन्हें अपराधों की माफी देकर उदारभाव से मुक्ति दीजियें । कुमार की प्रेरणा से महाराजा ने भी उन्हें छोड दिया । वे लोग पछताते हुए महाराजा ओर कुमार श्रीचन्द्र के पास गये । उनको कुमार ने योग्य पद प्रदान किया । इस प्रकार समय आनन्द से बीतने
लगा।
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