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( ४३२ ) राजा शुभगांग की प्रार्थना से महाराजा की आज्ञा से कुमार एक रोज सिंहपुर पधारे । गुणचन्द्र वहां साथ ही था। वहां उसके पूर्व जन्म की जन्मभूमी थी । उसे देख कर वह मूर्छित हो गया । कुमार ने उसे सावधान किया
और उससे उसके पूर्व जन्म का सारा हाल सुना । सब को इस बात का पता चला कि निमिच देखने वाला धरण ही गुणचंद्र है । इसने पूर्वभवमें तीर्थों का अाराधन कर उस पुण्य द्वारा की हुई हत्या के पापसे छुटकारा पाकर इस रुप में जन्म पाया।
. गुणचंद्र की पत्नी कमल श्री को भी जाती-स्मरण हो पाया। मैं पहिले जन्म में धरण की पत्नी श्रीदेवी थी। दूसरे भाव में जिनदत्ता हुई, और यह तीसरा भव कमलश्री का हुआ । लोगों ने उनके चरित्रों को सुनकर तीर्थों की महिमा परमेष्टी महामंत्र का प्रभाव मुक्त-कण्ठसे गाया। राजा शुभगांग ने अपनी पुत्री चंद्रकला और श्रीचंद्रराज को उस समय नहीं दिया गया दहेज अपूर्व ढंग से दिया । . .
_मातामह-नानाजी श्रीदीपचंद्रदेव के आग्रहसे दीप शिखा में कुमार की पधरावणी हुई। रानीप्रदीपावती जो कुमार की नानीजी लगती थीं उनने अपने दौहित्र कुमार