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( ४३० ) हुमा था, वहां प्रियमेलक नाम का नगर वसाया । कुछ
आगे बढकर समुद्र के किनारे पर अपने पिता महाराजा के नाम से प्रताप नगर बसाया। उन्हीं के नाम से सोने चांदी के सिक्के चलाये। .
इधर कर्कोटक द्वीप के स्वामो रविप्रभ का पुत्र कनकसेन अपनी कनकसेना आदि नव बहिनों के साथ समुद्र मार्ग से वहां आया। उसने महाराजा प्रतापसिंह से अपना परिचय देकर प्रार्थना की कि-देव उमा और खपरा नाम की जोगणियों से गवाते हुए आपके प्रतापी कुमार श्री चन्द्र राज के गुणों से आकुष्ट हुई ये मेरी बहिने स्वयंवरा हो कर पिताकी आज्ञा से यहां आई हैं। हमारी इन बहिनों का विवाह यहां सम्पन्न होना चाहिये । महाराजा ने प्रसन्नता से अनुमति प्रदान की और वहीं उन कन्याओं के साथ श्रीचन्द्रराज का विवाह बड़े ठाठ से कर दिया।
उस समय दहेज रूप में दश हजार हाथी, तीस हजार घोड़े, एक करोड़ पैदल सेना और अपरिमित सोना चांदी मणि रत्न आदि कर्कोटक द्वीप से लाई हुई सारी दहेज सामग्री कुमार को प्रदान की गई। अद्भुत गुण और सौन्दर्य शालिनी उन कन्याओं ने अपने सास श्वसुर