________________
( ४२८ ) लिये हम खुद ही हैं। परमेश्वर खुदा या गोड़ नाम की कोई दूसरी महाशक्ति का इस के साथ कोई सीधा संबंध नहीं होता।
हमारा चरित्र-नायक कुमार श्रीचन्द्र भी अपने ही •पुण्य-कर्मों से जीवन का विकास करता हुआ सुखी, और सम्पन्न हो गया था । अनुकूल काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत-कर्म और पुरुषार्थ के समवाय से ही कार्य सिद्धि हो सकती है। कुछ न होते हुए भी सब कुछ बन जाने का नाम ही तो कार्य सिद्धि है।
तिलकपुर की सीमा में महाराजाधिराज प्रतापसिंह को उनकी प्रियतमा महारानी सूर्यवतीजी अपने परम प्रतापी पुत्र कुमार श्रीचन्द्रराज के साथ मिली । पिता पुत्र के उस सुखदायी मिलन से सर्वत्र आनंद ही आनंद का अनुभव होने लगा । संबंधितव्यक्तियों को उन की यथायोग्य सेवा का सिरोपाव दिया गया । जंगल में मंगल हो गया।
उधर तिलकपुर के राजा तिलकसेन राधावेध साधना के समय से कुमार श्रीचन्द्र को चाह रहे थे । आज उन्हें पता लगा कि वे कुमार ही अपने प्रतापी पिता महाराज