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वर्तमान की अवस्था प्रायः भूतकाल के कार्यकलापों पर अवलम्बित होतीहै । उन्ही कार्य-कलापों से पैदा होने वाले सूक्ष्माति सूक्ष्मतम संस्कारों को हम भाग्य, दैव, विधि, कर्म, तकदीर और नशीब रूप से मानते हैं। उनमें जो शुभ होते हैं उन्हें पुण्य, और अशुभ होते हैं उन्हें पाप रूप मानने की परिपाटी चली आ रही है । पुण्य-पाप रूप कम आत्मा और जड द्रव्य दोनों के संबंध से हुआ करते हैं । दुःख, पाप-कर्मों का फल और सुख, पुण्यकर्मों का फल माना जाता है । इन का नियंत्रण काल, स्वभाव, नियति, और पुरुषार्थ से हुआ करता है । इन्हीं को शास्त्रों में पांच समवाय नाम से बताया है। अच्छी और बुरी दोनों अवस्थाओं के कर्ता धर्ता हमारे