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पर कुमार, की दृष्टि महाराज प्रतापसिंह के हाथी पर पडी । कुमार अपनी सेना को पंक्तिबद्ध बनाकर पिता का फौजी स्वागत करने के लिये, आगे बढे । महाराज प्रतापसिंह हाथी से उतर पड़े । कुमार श्रीचन्द्र ने बड़े विनीत भावसे पिता के चरणों में प्रणाम किया । पिता ने बड़े प्यार से अपने वीर शिरोमणि बेटे को हृदय से लगा कर अनेकौं हार्दिक भाव भरे आशीर्वाद दिये। दोनों फौजों का परस्पर में प्रेम स्वागत हुआ। .. महाराज का संकेत पाकर सेवकों ने रत्नजडाउ सुवर्ण सिंहासन लगा दिया । क्षण भर में वह स्थान पारिवारिक सभा के रूप में परिणत हो गया । सिंहासन पर महाराजने अपनी गोदी में कुमार को बिठाकर असीम प्यार किया । महारानी सूर्यवती ने भी महाराज के दर्शन कर अपनी चिर-वियोग-व्यथा को शान्त की । सब की आंखोंमें हर्ष के आंसू थे । हृदय गद् गद् हो रहे थे । सारी बहुओं ने अपने सास ससुर को भक्ति भाव से प्रणाम किया सबने आशीर्वाद पाकर अपने को कृतार्थ माना। जंगल में मंगल हो गया।
विजित ओर संबंधित राजाओं ने अपनी इज्जत के अनुरूप महाराजा की भेटें की। सब का परिचय कराया