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( ४२३ ) यायी बनाये । अपने प्रयास में उन्हें भी साथ ले लिया। कमशः महेन्द्रपुर में पहुंच कर वहां की उस चौर गुफा से धन निकाल कर जिस का था उस को दे दिया । राजकुमारी सुलोचना के साथ बडे ठाठ से ब्याह भी कर लिया।
प्रधान मंत्री गुणचंद्र को चौदह राजाओं के साथ कांपिल्य-पुरसे सेना आदि को लाने के लिये भेजा। साथ साथ चलने वाले श्रीलक्ष्मण, सुधीराज, सुदर और बुद्धिसागर नाम के मंत्रियों ने आगे जाकर महाराजा प्रतापसिंह को वधाई दी । उन्होंने कहा कि महाराज ! आप के चिरंजीवी कुमार श्रीचंद्रजी अपनी माता भाई और रानियों के साथ आपकी सेवा में आ रहे हैं । महेन्द्रपुर से तिलकपुर, रत्नपुर, और सिंहपुर होते हुए यहां पहुँचेगे।
इधर से गुणचन्द्र ने कुमार से कहलाया देव ! आप के द्वारा छोडा हुआ गंध हाथी दूसरे के काबू में नहीं आ रहा । यह जान कर महाराज श्रीचन्द्र अकेले वहां पहूँचे । उनके प्यार भरे वीर-बर्ताव को देख कर हाथी पानी पानी हो गया।
गजारूढ कुमार अपने मित्र गुणचन्द्र के साथ अपनी चन्द्रमुखी-चन्द्रलेखा आदि रानीयों को एवं राजा वीर