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य पर्वत पर स्थित नगर के बाहरी प्रदेश में जा पहुँचा ।
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वह उसने मनुष्य आदिकों से परिपूर्ण भूखण्ड को देखा गुप्तचरों को इस बात का पता लगाने का आदेश दे कर वह एक सघन वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा ।
कुछ ही समय बाद गुप्त चरों ने आकर सूचना दी कि राजन् ! यहाँ पर धर्म घोष सूरिजी महाराज विराजमान हैं और सुग्रीव आदि सभी विद्याधर उनका उपदेश सुन रहें हैं । इतना सुनते ही कुमार उन सब के साथ श्री गुरु माहाराज के पास जाकर वन्दना करके उचित स्थान पर बैठ गया । उस समय आचार्य महाराज उपस्थित भव्यों को तप कर्मपर श्रीचंद्र कुमार की प्रसिद्ध कथा फरमा रहे थे। उस समय उसको स्वयं वहां आया देख, वे और भी विशेष रूप से तपस्या के प्रभाव को बतलाने वाली देशना देने लगे ।
न नीचे जन्म स्यात् प्रभवति न रोग व्यतिकरो, नवाप्यज्ञानत्वं विलसति न दारिद्रय-ललितं ॥ पराभूति न स्यात् किमपि न दुरापं किल यतः, । तदेवेष्ट प्राप्तौ कुरुत निज शक्त्या पि सुतपः ॥
अर्थात् - तपस्या के प्रभाव से मनुष्य का उत्तम कुल में जन्म होता है । वह सदा नीरोग रहता है। दरिद्रता