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उसने विद्याधरी से कहा, माताजी ! आज आपके द्वार पर खड़े हैं ।"
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इस शुभ समाचार को सुनते ही विद्याधरी दौड़ी आई और कुमार को महल में ले जा कर उसका गुणगान करने लगी महाराज -- प्रतापसिंह के सुपुत्र श्रीचन्द्र ! आप हम लोगों के अहो भाग्य से ही यहां आये हैं । यह आपको प्यारी मदना रातदिन आपके वियोग में रोती हुई आपके मिलन की आशा का आधार पाकर हो आज तक जीवित बची है। आपके प्रेम और गुणों को स्मरण करके आपके विछोह में इस बाला ने अपने नेत्रों को सावन-भादों के बादल ही बना डाले हैं । आप दोनों का पारस्परिक प्रेम अत्यन्त सराहनीय है ।
sar उस विद्याधरी के आदेश से वे आठों कन्याएँ हाथों में वरमालाएँ लेकर कुमार के गले में पहनाने के लिये वहाँ उपस्थित हुई । यह देख कुमार श्रीचन्द्र ने उस विद्याधरी से कहा आपकी "ऐसी स्थिति क्यों है ? और ये कुमारिकाएँ कौन हैं" !
कुमार के प्रश्न का उतर देती हुई विद्याधरी ने कहना शुरू किया, वीरों के मुकुटमणि कुमार ! सुनो । मैं आपको अपना सारा वृतान्त सुनाती हूँ ।