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(३ ) रहा है। चन्द्रसेन की क्रूरता, नृशंसता और अदूरदर्शिता पर क्रोध आ रहा है। उस अपराधी को भी हम यहां चौर की तरह बांध कर लाए हैं। ...
इस बात को सुन कर सान्त्वना देते हुए कुमार ने कही-राजन् ! आपका या राजकुमारी का इसमें कोई दोष नहीं है।
"सा सा सम्पद्यते युद्धिः-सा मतिः सा च भावना ।
संहायास्ताहशा ज्ञेया, · यारशी भवितव्यता ।। .. अर्थात्-जैसी होनी होती है, मनुष्य में वैसी ही बुद्धि मति और भावना उत्पन्न हो जाती है। वैसी ही उसे सहायता मी प्राप्त हो जाती है।
जो भावी संसार में, होती अपने हाथ ।
राम न जाते हरिण संग सीय न रावण हाथ ॥ अतः हे राजन् ! इसके लिए आप जरा भी दुखी न होइए, चन्द्रसेन के बंधन. कटवा कर उसे यहां बुलाइयें । राजा ने ऐसा ही किया । उसके आने पर श्री चन्द्रने कहा-अरे श्रेष्ठ राजकुल में जन्म लेकर भी तैने यह नीच कुर्कमा क्यों किया ? वह लज्जावनत हो कर बैठा रहा ।
" श्रीचन्द्र ने हंसावली से भी कही-भद्रे ! इतनी दुखी क्यों हो रही हो । अवेश में आकर विना सोचे समझे