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( ३६६ ) - - अर्थात्--देवताओं से दिये हुए कनकध्वज के राज्य कनक पुर के और उसकी पुत्री कानकावली के जो स्वामी हुए हैं उन नवलक्षाधिपति श्रीचन्द्र कुमार की जय हो । जिनने श्रीपर्वत के अग्रिम शिखर पर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का विशाल चतुमुर्ख मन्दिर बनाया उन श्रीचन्द्र कुमार की जय हो । ये कुमार ही श्रीचन्द्रराज हैं ऐसा "जानकर पास में खड़े मन्त्री आदिकों ने राजा के पास पहुंच कर निवेदन किया कि महाराज ! श्री चन्द्रकुमार यहीं आये हुए हैं । इतना सुनते ही राजा वज्रसिंह अपनी कन्या हंसावली को साथ लेकर वहां आ पहूंचे । परस्पर में शिष्टाचार--स्वागत सत्कार के बाद कुमार ने पूछा कन्या को क्या दुःख है ? वज्रसिंह ने कहा--महाराज यह मेरी पुत्री हंसावली कनक नरेश की पुत्री कनकावली की सखी है। कनकपुर और कनकावली के आप स्वामी हो गये हैं । यह जानकर इसने भी निश्चय किया कि कनकावली के पति ही मेरे पति होंगे।
..इस दृढ़-निश्चय को जानकर मैंने विश्रुत नाम के अपने मन्त्री को आपकी सेवा में कनकपुर भेजा था । वहां लक्ष्मणमन्त्रि-द्वाराआप अनिश्चित काल के लिये अनिश्चित विदेश यात्रा में पधारे हुए हैं। विश्रुत मन्त्री से ऐसा