________________
( ३६४ )
मदन सुन्दरी से कहा- ये ऐसा कहती हैं तो रह जाओ । मदना ने कहा 'इतो व्याघ्र इतस्तटी' - न्याय उपस्थित हुआ हैं। स्वामिन् ! देव योग से बिछुड़े हुए आपका मिलाप बड़ी मुश्किल से हुआ है। हालांकि इन बहनों को छोड़ते हुए भी मुझे कष्ट होता है, पर मैं आपको तो कतई नहीं छोड़ सकती । मैं तो आपके साथ ही चलूंगी ।
.
है
श्री चन्द्रराज ने उन विद्याधर - कन्याओं को मैं निश्चित अवधि में लौट आउगा की प्रतिज्ञा करके आश्वा सन दिया । और उन्हें वहीं रहने को विवश किया । उन्हें देने योग्य वस्तुएं देकर सन्तुष्ट किया, और मदना को लेकर वहां से चल दिये। जहां रथ खड़ा किया था, वहां पहुंच कर कुमार रथ में बैठ कर कनकपुर की ओर चल दिये । आपस में विरह की अवधि में बीती हुई अपनी घटनाओं को सुनाते हुए वे दोनों मार्ग में चले जा रहे थे । जाते जाते रुद्रपल्ली नामक नगरी के समीप पहुँचे ।
!
नगर की बाहर विशाल जन समुदाय इकट्ठा हो रहा था | क्या बात है ? यह जानने के लिये कुमार उधर की तरफ आगे बढ़े। उनने देखा एक चिता बनी हुई हैं। एक कुश काय कन्या उसके पास खड़ी है । राजा आदि उसे समझा रहे हैं बेटी ! अग्नि प्रवेश मत करो। जीवित