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की ओर चले । मार्ग में ही माता सूर्यवतीजी के पुत्ररत्न यानि भाई उत्पन्न होने की खुशी के समाचार कुमार को मिले । अपने भाई के उत्पन्न होने की खुशी में कुमार ने भारी समारोह किया । भारी खुशियाँ मनाई गई । सारे अधीनस्थ देशों में भी उत्सव आनन्द मनाये गये । राजा गुण विभ्रम को इस खुशी में कैद से छोड़ दिया गया । दूसरे भी कई कैदी छोडे गये ।
सत्कार किया । विनीत भाव से
कुमार ने गुणविश्रम का यथायोग्य उसने भी अपने सभी अपराधों के लिये क्षमा चाही । कुमार ने उसे अपने पास बिठाकर पुनः इज्जत प्रदान की। वहां से चलते हुए क्रमशः भारी ठाठ के साथ चन्द्रपुर में प्रवेश किया, जनता ने अपने राजा का पितृ प्रेम से स्वागत किया और राजा ने प्रजा को अपने पुत्रवात्सल्य से आनंदित किया। राजमहल में कुमार श्रीचन्द्र ने अपनी माता श्रीसूर्यवतीजी को बडे विनीत भाव से प्रणाम किया । मदनसुन्दरी आदि बहुएँ सासूजी के पैरों पड़ीं । माता ने पुत्रवती हो, सौभाग्यवती हो, ऐसे आशीर्वाद दिये । राजाओं ने मन्त्रियों ने भी महारानी सूर्यवतीजी को प्रणाम किया। स्वागत शिष्टाचार खूब अच्छे ढंग से हुआ ।