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ले अपना शस्त्र संभाल ले । यह कह कर उसने श्रीचन्द्र पर तलवार का प्रहार किया । राजाधिराज श्रीचन्द्र ने बडी फुर्ती से अपने चन्द्रहास से उसे बीच में ही काट दिया । चन्द्र हास के सामने वह निस्तेज हो गया । श्रीचन्द्र ने गुणविभ्रम को हाथी से गिरा दिया। सैनिकों ने उसे कस कर बांध लिया और एक लकड़ी के पींजड़े में उसे डाल दिया । बाकी के राजाओं को भी और उन की सारी सेना को हराकर हिरासत में ले लिया । सभी पराजित अधिकारी अपराधियों की भाँती श्रीचन्द्र के सामने हाथ बांधे खडे थे । विजयश्री कुमार से और कुमार विजयश्री से -बर वधू के रुपमें एक दूसरे से शोभा पा रहे थे ।
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कल्याण पुर में और उसके सातों देशों में अपने मंत्रियों को भेज कर श्रीचन्द्र ने अपनी आज्ञा प्रचलित करवा दी । कनकपुर में उसके निवासियों ने विजयी महाराज श्रीचन्द्रका नगर, हाट, मकान, मन्दिर, महल -राजमार्ग आदि खूब सजाकर जय जय शब्दों से बडे भारी समा-: रोह के साथ स्वागत किया ।
कुछ समय वहां ठहर कर कुमार अपनी दोनों स्त्रियों के और अधीनस्थ राजाओं के साथ मातृ दर्शन की उत्कण्ठा से श्री पर्वत पर बसे हुए अपने श्री चन्द्रपुर नगर