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श्रीचन्द्र ने अपने छोटे भाई को गोदी में लिया, गुण: लक्षणों के अनुसार उसका एकांगवरवीर ऐसा नाम रक्खा । राजाओं के नाम पत्र लिखे गये । पत्र पाकर सभी राजा लोग श्रीचन्द्र की सेवा में था उपस्थित हुए । कईयों ने कन्याएँ देकर, कईयों ने धन, रत्न, हाथी घोडे आदि अपूर्व वस्तुएं भेंट कर अपनी कृतज्ञता प्रकट की । पद्मिनी चन्द्रकला वामांग, वरचन्द्र, सुधीराज़ और धनंजय ये लोग भी एक बडी भारी सेना के साथ वहां आ पहुँचे ।
कुमार के वैभव को देखकर सभी लोग बहुत खुश हुए । महाराज श्रीचन्द्र ने भी वामांग को सचिव, धनंजय को सेनापति इस प्रकार उन सबको अलग २ यथायोग्यपदों पर नियुक्त किये। रानी चन्द्रकला को महारानी बनाया । चत्रिय कुमार कुजर को और मल्ल - भील को उचित शिक्षा के साथ वहीं श्रीपर्वत के रक्षाधिकारी कायम किये ।
सारे परिवार के साथ श्रीचन्द्र ने भगवान श्री जिनेश्वरदेव के मंदिर में वंदन पूजन किया । अष्टान्हिक महोत्सव कर के अपने सम्यग्दर्शन को निर्मल किया । निग्रंथ पंचमदाबत धारी त्यागी संयमी साधु गुरुयों की सेवा