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( ३६६ ) जल मरने का अकार्य मत करो । दुर्लभ मानव-भव बार नहीं मिलने का । आत्महत्या एक घोर पाप है। उसे करके अपने आप को क्यों कलंकित करती हो। चाहे मन से और बचन में वरण न किया हो पर पाणि-ग्रहण कर लेने पर वह निश्चित रूप से पति हो ही जाता है
सिंह-गमन सुपुरुष-वचन, कदली फले इक बार । तिरिया तेल हमीर-हठ, चढे न दूजी बार ।।
सज्जनों का वचन और स्त्रियों का व्याह एक बार ही होता है।
हंसावली ने कहा-महापुरुष ! जो आप फरमाते हैं वह सच है। फिर भी आप सती स्त्रियों के कुल धर्म पर दृष्टि डालिए । स्त्री मन से जिसको अपना पति स्वीकार करलेती है वही उसका पति हो सकता है, दूसरा नहीं। मैंने
आपके भ्रम में उसका हाथ पकड़ा था, लेकिन अब प्रम के न रहने पर मैं उसे क्यों मानू मैं दृढ़ता से उसका त्याग करती हूँ शास्त्रों में कहा भी गया है।..
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः । तथैवालिङ्ग्यते भार्या- तथैवलिङग्यते स्वसा॥
अर्थात-मन ही मनुष्यों के बंध और मोक्ष का कारण है जिस प्रकार स्त्री का आलिंगन किया जाता है