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( ४०२ ) न्तर होने पर भी सच्चे जैनत्व के अभाव में हम संसार के दुःखों से मुक्त नहीं हुए हैं। सर्वथा वासना को जीतने वाले और वासना को जीतने का अभ्यास करने वाले महापुरुष सदा वंदनीय होते हैं । वह दिन धन्य, परमधन्य होगा जब कि हम वासनाओं पर काबू कर लेंगे। . इस प्रकार जीवन को उन्नत बनाने वाले श्रीचन्द्रराज़ के प्रवचन को सुनकर राजा, मंत्री, राजकन्या, आदि सभी लोग बड़े प्रसन्न हुए । चन्द्रसेन कुमार-श्रीचन्द्र के चरणों में गिरकर कहने लगा-स्वामिन् ! आपने मेरे प्राणों की तो रक्षा की ही है पर इससे भी बढ़कर वासना विजय-विवेक को समझाकर आपने मेरा परम उपकार भी किया है। आज से मुझे आप अपना एक छोटासा सेवक समझे।
इधर कुमारी हंसावली के ज्ञान-चक्षु भी खुल गये। उसके मनोभावों में सहसा परिवर्तन हो गया। उसका मुख-मण्डल ज्ञान की ज्योति से चमक उठा । वह हाथ जोड़कर बड़ी नम्रता से कहने लगी-देव ! पहिले तो
आपने सौंदर्य, शोर्य, औदार्य आदि गुणों से मेरा मन हर लिया था, और प्रांज इस प्रकार का अद्भुत ज्ञान सुनाकर, आपने मेरी रक्षा की है। आज से मैं आपको